27 May, 2020

नफ़रती कीड़े

कम्बख्त बहुत सारे बच्चे पैदा करते हैं  
सब मिल के फ़िर अल्लाह अल्लाह करते हैं 
क्रिकेट में पाकिस्तान को करते हैं सपोर्ट
फिर वही आतंकी बन के करते हैं विस्फोट 
एक मर्द, दो-तीन बीवियाँ, यह कैसा हिसाब? 
एक ही असली भगवान, यह कैसी बात जनाब? 
काश बटवारे के समय ही निकल लेते पाकिस्तान 
काश हमारे यहाँ न बजती लाउडस्पीकर पे अज़ान 
खैर, हम तो इनको झेल रहे है पैंसठ सालों से 
यह भी याद रखेंगे पाला पड़ा दिलवालों से 
मस्जिद तोड़ दिया, अब होगा मंदिर का काम 
अल्लाह कसम इन से बुलवाएंगे हम जय श्री राम  

इस प्रकार का ज़हर उगलता है नफ़रती कीड़ा 
ऐसी ही ओछी बातों से देता है समाज को पीड़ा 
बुरा चाहोगे तो बुराई ही दिखेगी भाईसाब 
कीड़े तो कलाम में भी देख लेते हैं कसाब 
होगी शांति चारो ओर, होगी शांति चारो ओर, 
जब हम मिल के करेंगे, इन कीड़ो को इगनोर 

Important: This post is not meant to hurt the sentiments of any community, especially Muslims. On the contrary, the sole purpose of this post is to quash people who have nothing but hatred for other communities. This post highlights the kind of 'talks' they engage in for Muslims. If anyone feels hurt or offended by this post, please accept my apology.

11 May, 2020

मेरा बर्तन धोने का सफ़र

इस lockdown का सुन लो यह दुखद किस्सा,
कामवाली तो गई, दे कर अपने कामों  में हिस्सा

झाड़ू पोछा बीवी का, बर्तन करना मेरा,
दोनों की ड्यूटी शुरू, जब हो ले सवेरा

एक दिन जब sink में देखा बर्तनों का पहाड़,
"क्या घूर रहा है चश्मिश", पीछे से आई दहाड़

चलो जी शुरू करू लेके प्रभु का नाम ,
किसी तरह निपटाऊ यह वाहियात काम

पंद्रह डिग्री झुकना था, झुक पाया सिर्फ दस,
मेरा पेट बीच में फस  गया, कहने लगा 'बस'

सबसे पहले आई हाथ में, सब्ज़ी की कढ़ाई,
खुरच खुरच के शुरू करी मैंने कठिन चढ़ाई

फिर हाथ आयी हाथ कुछ प्लेट, थी बेहद्द आसान,
पल में सफा, पल में दफ़ा, दो मिनट की मेहमान

अगला नंबर cooker का, जिसपे चिपकी थी दाल,
सोचा अपने सर पे दे मारु, कर दू sink को लाल ,

फिर आये मेरे प्यारे, चम्मच और कटोरी,
ज़ीरो मेहनत इनपे, करी फुल कामचोरी

अब आए काँटे, चमचे, प्याली, कढ़छी, छन्नी , छूरी ,
अकेले तो यह कुछ नहीं, मिल के कराए मेहनत पूरी

एक गिलास दो गिलास तीन गिलास, चार,
हाथ इनमें घुसते नहीं, घंटा साफ़ होंगे यार

अगले बर्तन को देखके दिल से निकली हाय ,
कौन है वह मनहूस जो गर्मी में पीता है चाय

आगे संभाल के, इस बर्तन को न आए आंच,
इधर उधर टकरा गया, तो फैल जाएगा काँच

आधा घंटा बीता, थकान होने लगी अब,
मंझे हुए खिलाड़ी ने माँझ लिया था सब,

अब धोने का टाइम आया, महसूस हुई आसानी,
मेरे साबुन में लिपटे बच्चे, अब चाह रहे थे पानी

धोते धोते पानी भर गया, फस गया था खाना,
घिन्न आई बेहद्द , मुँह सड़ा के पड़ा हटाना

कुछ देर बाद अचानक आवाज़ आई, बोली 'यह ले लो',
खून मेरा खौल गया, जब कही से प्रकट हुए गंदे बर्तन दो

किसी तरह धोए सब, ख़त्म हुआ यह काम,
कूद के लेट गया पलंग पे, पीठ पे लगाया बाम

फ़ोन उठाया हाथ में, खोली amazon की दूकान,
दिए 2000 खर्च, ख़रीदा कुछ disposable सामान

- Ksh, May 2020

Copyright Disclaimer

All the pictures and contents on Dusht-ka-Drishtikone are protected by Copyright Law and should not be reproduced, published or displayed without the explicit prior written permission from the author of the blog, Kshitij Khurana.